अध्यापक उस दीपक के समान है जो खुद जलकर दूसरों को प्रकाश देता है |

अध्यापक उस दीपक के समान है जो खुद जलकर दूसरों को प्रकाश देता है |

प्रेरक प्रसंग संग्रह

                             प्रेरक प्रसंग संग्रह



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अंगिरा ऋषि अपनी विद्वता और तेजस्विता के लिए प्रसिद्ध थे। उनके मार्गदर्शन में अनेक शिष्य ज्ञान प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाते थे। उदयन उनका एक अत्यंत प्रतिभावान शिष्य था। ऋषि उसके प्रति अत्यंत स्नेह रखते थे। एक बार ऋषि ने महसूस किया कि उदयन के व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है। उसमें न सिर्फ अहंकार आने लगा था, बल्कि वह आलस्य का भी शिकार होता जा रहा था। ऋषि इससे दुखी थे। वह उदयन को इनसे बाहर निकालना चाहते थे। उन्हें एक तरकीब सूझी। एक रात वह उदयन के साथ किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। तभी अचानक चर्चा रोककर उन्होंने उदयन से कहा, 'वत्स, सामने रखी अंगीठी में झांक कर देखो, कोयला दहकने के कारण कितना तेजस्वी लग रहा है। इसे निकालकर मेरे सामने रख दो जिससे मैं पास से इसे देख सकूं।' उदयन ने कोयले को अंगीठी से निकालकर उनके समीप रख दिया। कुछ ही क्षणों में दहकता हुआ कोयला अंगारे की जगह राख में परिवर्तित हो गया। दहकते हुए अंगारे को राख में परिवर्तित होते देख ऋषि उदयन से बोले, 'वत्स देखो, अंगीठी का सबसे चमकदार कोयला जिस प्रकार अग्नि के तेज से विमुख होते ही राख बन गया, उसी प्रकार सक्रिय और प्रतिभावान व्यक्ति भी अभ्यास, स्वाध्याय, विनम्रता, नेकी व सक्रियता से विमुख होते ही आलस्य तथा अहंकार का शिकार होकर निस्तेज व गुणविहीन हो जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इस बात को अपने हृदय में बसा लेना चाहिए कि सफलता, अभ्यास, ज्ञान, सक्रियता व बुद्धिमत्ता ही किसी व्यक्ति के जीवन को सार्थक बनाती है। इन गुणों को अपनाकर ही उल्लेखनीय सफलता हासिल की जा सकती है। अहंकार व आलस के व्यक्ति पर हावी होते ही वह इन गुणों से युक्त होते हुए भी गुणरहित होता है और ऐसे व्यक्ति की छवि धीरे-धीरे धूमिल होती जाती है।' उदयन अपने गुरु का आशय समझ गया।🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃

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मूसलाधार वर्षा के साथ ठंड अपने चरम पर थी। इसी मौसम में एक अधेड़ दंपती ने फिलाडेल्फिया के एक छोटे से होटल के रिसेप्शन क्लर्क से एक कमरा देने का अनुरोध किया। वह क्लर्क उस मामूली से होटल में एक संभ्रांत दंपती को देखकर आश्चर्यचकित हुआ। क्लर्क ने अपनी मजबूरी बता कर कहा कि सारे कमरे घिरे हुए हैं। दंपती यह सुनकर निराश होकर बोले, 'अब ऐसे मौसम में हम लोग कहां जाएं?'

रिसेप्शनिस्ट ने कुछ देर सोचा और बोला कि अगर आप अन्यथा ना सोचें, तो मेरा एक अपना छोटा सा साधारण कमरा है। आप उसमें रात गुजार सकते हैं। मैं अकेला हूं, इसी ऑफिस में या कहीं और रात काट लूंगा। आगंतुक दंपती ने उसको धन्यवाद दिया और उसके कमरे में रात बिताई। सुबह जाते समय असुविधा में सोते हुए रिसेप्शन क्लर्क को जगाना उचित न समझकर चले गए।

इसके कई वर्षों बाद उस क्लर्क को एक पत्र मिला जिसके साथ न्यूयॉर्क की फ्लाइट की टिकट भी। आश्चर्यचकित सा क्लर्क न्यूयॉर्क पहुंचा तो उसने देखा उसके स्वागत में सालों पहले उसके कमरे में रात बिताने वाले वही महाशय खड़े थे। वह थे अमेरिका के प्रसिद्ध न्यायाधीश विलियम वेल्फोर्ड आस्टो। दूसरे दिन न्यायाधीश विलियम वेल्फोर्ड आस्टो उसे अपने साथ लेकर वेल्फोर्ड आस्टोरिया होटल पहुंचे। उन्होंने उस क्लर्क से कहा कि आज से आप इस होटल के मैनेजर हो।

क्लर्क बोला, 'मैं मामूली से होटल में काम करने वाला क्लर्क क्या इतने बड़े होटल का प्रबंध संभाल पाऊंगा?' न्यायाधीश ने कहा कि तुम साधारण नहीं हो। तुम्हारे अंदर मानवता का, दया का ऐसा गुण है जो केवल असाधारण व प्रतिभावान व्यक्तियों में ही हो सकता है। तुम्हारी विनम्रता, इंसानियत, स्वयं तकलीफ सहने का करुणा भाव तुम्हें इस पद के योग्य बनता है।

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प्रार्थना और भगवान :-

यह एक सत्य कहानी है 
डा. मार्क एक प्रसिद्ध कैंसर स्पैश्लिस्ट हैं, एक बार किसी सम्मेलन में भाग लेने लिए किसी दूर के शहर जा रहे थे। वहां उनको उनकी नई मैडिकल रिसर्च के महान कार्य के लिए पुरुस्कृत किया जाना था। वे बड़े उत्साहित थे व जल्दी से जल्दी वहां पहुंचना चाहते थे। उन्होंने इस शोध के लिए बहुत मेहनत की थी। बड़ा उतावलापन था, उनका उस पुरुस्कार को पाने के लिए।

उड़ने के लगभग दो घण्टे बाद उनके जहाज़ में तकनीकी खराबी आ गई, जिसके कारण उनके हवाई जहाज को आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी। डा. मार्क को लगा कि वे अपने सम्मेलन में सही समय पर नहीं पहुंच पाएंगे, इसलिए उन्होंने स्थानीय कर्मचारियों से रास्ता पता किया और एक टैक्सी कर ली, सम्मेलन वाले शहर जाने के लिए। उनको पता था की अगली प्लाईट 10 घण्टे बाद है। टैक्सी तो मिली लेकिन ड्राइवर के बिना इसलिए उन्होंने खुद ही टैक्सी चलाने का निर्णय लिया।

जैसे ही उन्होंने यात्रा शुरु की कुछ देर बाद बहुत तेज, आंधी-तूफान शुरु हो गया। रास्ता लगभग दिखना बंद सा हो गया। इस आपा-धापी में वे गलत रास्ते की ओर मुड़ गए। लगभग दो घंटे भटकने के बाद उनको समझ आ गया कि वे रास्ता भटक गए हैं। थक तो वे गए ही थे, भूख भी उन्हें बहुत ज़ोर से लग गई थी। उस सुनसान सड़क पर भोजन की तलाश में वे गाड़ी इधर-उधर चलाने लगे। कुछ दूरी पर उनको एक झोंपड़ी दिखी।

झोंपड़ी के बिल्कुल नजदीक उन्होंने अपनी गाड़ी रोकी। परेशान से होकर गाड़ी से उतरे और उस छोटे से घर का दरवाज़ा खटखटाया। एक स्त्री ने दरवाज़ा खोला। डा. मार्क ने उन्हें अपनी स्थिति बताई और एक फोन करने की इजाजत मांगी। उस स्त्री ने बताया कि उसके यहां फोन नहीं है। फिर भी उसने उनसे कहा कि आप अंदर आइए और चाय पीजिए। मौसम थोड़ा ठीक हो जाने पर, आगे चले जाना।

भूखे, भीगे और थके हुए डाक्टर ने तुरंत हामी भर दी। उस औरत ने उन्हें बिठाया, बड़े सम्मान के साथ चाय दी व कुछ खाने को दिया। साथ ही उसने कहा, "आइए, खाने से पहले भगवान से प्रार्थना करें और उनका धन्यवाद कर दें।"

डाक्टर उस स्त्री की बात सुन कर मुस्कुरा दिेए और बोले,"मैं इन बातों पर विश्वास नहीं करता। मैं मेहनत पर विश्वास करता हूं। आप अपनी प्रार्थना कर लें।"

टेबल से चाय की चुस्कियां लेते हुए डाक्टर उस स्त्री को देखने लगे जो अपने छोटे से बच्चे के साथ प्रार्थना कर रही थी। उसने कई प्रकार की प्रार्थनाएं की। डाक्टर मार्क को लगा कि हो न हो, इस स्त्री को कुछ समस्या है।

जैसे ही वह औरत अपने पूजा के स्थान से उठी, तो डाक्टर ने पूछा,"आपको भगवान से क्या चाहिेए? क्या आपको लगता है कि भगवान आपकी प्रार्थनाएं सुनेंगे?"
उस औरत ने धीमे से उदासी भरी मुस्कुराहट बिखेरते हुए कहा,"ये मेरा लड़का है और इसको एक रोग है जिसका इलाज डाक्टर मार्क नामक व्यक्ति के पास है परंतु मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं उन तक, उनके शहर जा सकूं क्योंकि वे दूर किसी शहर में रहते हैं। यह सच है की कि भगवान ने अभी तक मेरी किसी प्रार्थना का जवाब नहीं दिया किंतु मुझे विश्वास है कि भगवान एक न एक दिन कोई रास्ता बना ही देंगे। वे मेरा विश्वास टूटने नहीं देंगे। वे अवश्य ही मेरे बच्चे का इलाज डा. मार्क से करवा कर इसे स्वस्थ कर देंगे।"

डाक्टर मार्क तो सन्न रह गए। वे कुछ पल बोल ही नहीं पाए। आंखों में आंसू लिए धीरे से बोले,"भगवान बहुत महान हैं।"
(उन्हें सारा घटनाक्रम याद आने लगा। कैसे उन्हें सम्मेलन में जाना था। कैसे उनके जहाज को इस अंजान शहर में आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी। कैसे टैक्सी के लिए ड्राइवर नहीं मिला और वे तूफान की वजह से रास्ता भटक गए और यहां आ गए।)
वे समझ गए कि यह सब इसलिए नहीं हुआ कि भगवान को केवल इस औरत की प्रार्थना का उत्तर देना था बल्कि भगवान उन्हें भी एक मौका देना चाहते थे कि वे भौतिक जीवन में धन कमाने, प्रतिष्ठा कमाने, इत्यादि से ऊपर उठें और असहाय लोगों की सहायता करें। वे समझ गए की भगवान चाहते हैं कि मैं उन लोगों का इलाज करूं जिनके पास धन तो नहीं है किंतु जिन्हें भगवान पर विश्वास है।
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छोटी मनु ने गुल्लक से सब सिक्के निकाले और उनको बटोर कर जेब में रख लिया, निकल पड़ी घर से - पास ही केमिस्ट की दुकान थी
वो काउंटर के सामने खड़े होकर बोल रही थी पर छोटी सी मनु किसी को नज़र नहीं आ रही थी, ना ही उसकी आवाज़ पर कोई गौर कर रहा था, सब व्यस्त थे |
दुकान मालिक का कोई दोस्त बाहर देश से आया था वो भी उससे बात करने में व्यस्त था | तभी उसने जेब से एक सिक्का निकाल कर काउंटर पर फेका सिक्के की आवाज़ से सबका ध्यान उसकी ओर गया, उसकी तरकीब काम आ गयी |
दुकानदार उसकी ओर आया और उससे प्यार से पूछा क्या चाहिए बेटा ? उसने जेब से सब सिक्के निकाल कर अपनी छोटी सी हथेली पर रखे और बोली मुझे "चमत्कार" चाहिए, दुकानदार समझ नहीं पाया उसने फिर से पूछा, वो फिर से बोली मुझे "चमत्कार" चाहिए |
दुकानदार हैरान होकर बोला - बेटा यहाँ चमत्कार नहीं मिलता | वो फिर बोली अगर दवाई मिलती है तो चमत्कार भी आपके यहाँ ही मिलेगा |
दुकानदार बोला - बेटा आप से यह किसने कहा ? अब उसने विस्तार से बताना शुरु किया - अपनी तोतली जबान से - मेरे भैया के सर में टुमर (ट्यूमर) हो गया है, पापा ने मम्मी को बताया है की डॉक्टर 4 लाख रुपये बता रहे थे - अगर समय पर इलाज़ न हुआ तो कोई चमत्कार ही इसे बचा सकता है और कोई संभावना नहीं है, वो रोते हुए माँ से कह रहे थे अपने पास कुछ बेचने को भी नहीं है, न कोई जमीन जायदाद है न ही गहने - सब इलाज़ में पहले ही खर्च हो गए है, दवा के पैसे बड़ी मुश्किल से जुटा पा रहा हूँ |
वो मालिक का दोस्त उसके पास आकर बैठ गया और प्यार से बोला अच्छा ! कितने पैसे लाई हो तुम चमत्कार खरीदने को, उसने अपनी मुट्टी से सब रुपये उसके हाथो में रख दिए, उसने वो रुपये गिने 21 रुपये 50 पैसे थे | वो व्यक्ति हँसा और मनु से बोला तुमने चमत्कार खरीद लिया, चलो मुझे अपने भाई के पास ले चलो |
वो व्यक्ति जो उस केमिस्ट का दोस्त था अपनी छुट्टी बिताने भारत आया था और न्यूयार्क का एक प्रसिद्द न्यूरो सर्जन था | उसने उस बच्चे का इलाज 21 रुपये 50 पैसे में किया और वो बच्चा सही हो गया |
प्रभु ने मनु को चमत्कार बेच दिया - वो बच्ची बड़ी श्रद्धा से उसको खरीदने चली थी वो उसको मिल गया | प्रभु सबके पालनहार है - उनकी मदद ऐसे ही चमत्कार के रूप में मिलती रहती है, बस आवश्यकता है सच्ची श्रद्धा की |
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प्रेरक कथा -- जीवन में संघर्ष आवश्यक है

एक बार एक व्यक्ति को अपने बगीचे में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून दिखाई दिया, अब प्रतिदिन वह व्यक्ति उसे देखने लगा , और एक दिन उसने गौर किया कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया है| उस दिन वो वहीं बैठ गया और घंटो उसे देखता रहा| उसने देखा की तितली उस खोल से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है , पर बहुत देर तक प्रयास करने के
बाद भी वो उस छेद से नहीं निकल पायी और फिर वो बिलकुल शांत हो गयी मानो उसने हार मान ली हो|
   इसलिए उस आदमी ने निश्चय किया कि वो उस तितली की मदद करेगा, उसने एक कैंची उठायी और कोकून के छेद को इतना बड़ा कर दिया की वो तितली आसानी से बाहर निकल सके और यही हुआ,
वह तितली बिना किसी और संघर्ष के आसानी से बाहर निकल आई, पर उसका शरीर सूजा हुआ था,और पंख सूखे हुए थे|
वह व्यक्ति तितली को यह सोच कर देखता रहा कि वो किसी भी समय अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ|  इसके उलट बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और उसे अपनी बाकी की ज़िन्दगी इधर-उधर घिसटते हुए बितानी पड़ी|
वो आदमी अपनी दया और जल्दबाजी में ये नहीं समझ पाया कि असल में कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसलिए बनाया है ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल उसके पंखों में पहुच सके और वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके|
वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही वो चीज होती जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है. यदि हम बिना किसी संघर्ष के सब कुछ पाने लगे तो हम भी एक अपंग के सामान हो जायेंगे| बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते जितना हमारी क्षमता है, इसलिए जीवन में आने वाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये वो आपको कुछ ऐसा सीखा जायंगे जो आपकी ज़िन्दगी की उड़ान को संभव बना पायेंगे|।

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बहुत समय पहले की बात है .....
एक चरवाहा था जिसके पास 10 भेड़े थीं। वह रोज उन्हें चराने ले जाता और शाम को बाड़े में डाल देता। सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक सुबह जब चरवाहा भेडें निकाल रहा था तब उसने देखा कि बाड़े से एक भेड़ गायब है। चरवाहा इधर-उधर देखने लगा, बाड़ा कहीं से टूटा नहीं था और कंटीले तारों की वजह से इस बात की भी कोई सम्भावना न थी कि बहार से कोई जंगली जानवर अन्दर आया हो और भेड़ उठाकर ले गया हो।
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चरवाहा बाकी बची भेड़ों की तरफ घूमा और पुछा :- "क्या तुम लोगों को पता है कि यहाँ से एक भेंड़ गायब कैसे हो गयी…क्या रात को यहाँ कुछ हुआ था.?” 
सभी भेड़ों ने ना में सर हिला दिया।
उस दिन भेड़ों के चराने के बाद चरवाहे ने हमेशा की तरह भेड़ों को बाड़े में डाल दिया। अगली सुबह जब वो आया तो उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयीं, आज भी एक भेंड़ गायब थी और अब सिर्फ आठ भेडें ही बची थीं।इस बार भी चरवाहे को कुछ समझ नहीं आया कि भेड़ कहाँ गायब हो गयी। बाकी बची भेड़ों से पूछने पर भी कुछ पता नहीं चला। ऐसा लगातार होने लगा और रोज रात में एक भेंड़ गायब हो जाती। फिर एक दिन ऐसा आया कि बाड़े में बस दो ही भेंड़े बची थीं। 
चरवाहा भी बिलकुल निराश हो चुका था, मन ही मन वो इसे अपना दुर्भाग्य मान सब कुछ भगवान् पर छोड़ दिया था।आज भी वो उन दो भेड़ों के बाड़े में डालने के बाद मुड़ा। तभी पीछे से आवाज़ आई :-
“रुको-रुको मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ वर्ना ये भेड़िया आज रात मुझे भी मार डालेगा.!”
चरवाहा फ़ौरन पलटा और अपनी लाठी संभालते हुए बोला, “ भेड़िया ! कहाँ है भेड़िया.?”
भेड़ इशारा करते हुए बोली :- “ये जो आपके सामने खड़ा है दरअसल भेड़ नहीं, भेड़ की खाल में भेड़िया है। जब पहली बार एक भेड़ गायब हुई थी तो मैं डर के मारे उस रात सोई नहीं थी। तब मैंने देखा कि आधी रात के बाद इसने अपनी खाल उतारी और बगल वाली भेड़ को मारकर खा गया.!” 
भेड़िये ने अपना राज खुलता देख वहां से भागना चाहा, लेकिन चरवाहा चौकन्ना था और लाठी से ताबड़तोड़ वार कर उसे वहीँ ढेर कर दिया।चरवाहा पूरी कहानी समझ चुका था और वह क्रोध से लाल हो उठा, उसने भेड़ से चीखते हुए पूछा :- “जब तुम ये बात इतना पहले से जानती थीं तो मुझे बताया क्यों नहीं.?” 
भेड़ शर्मिंदा होते हुए बोली :- “मैं उसके भयानक रूप को देख अन्दर से डरी हुई थी, मेरी सच बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई, मैंने सोचा कि शायद एक-दो भेड़ खाने के बाद ये अपने आप ही यहाँ से चला जाएगा पर बात बढ़ते-बढ़ते मेरी जान पर आ गयी और अब अपनी जान बचाने का मेरे पास एक ही चारा था- हिम्मत करके सच बोलना, इसलिए आज मैंने आपसे सब कुछ बता दिया.!"
चरवाहा बोला, :- “तुमने ये कैसे सोच लिया कि एक-दो भेड़ों को मारने के बाद वो भेड़िया यहाँ से चला जायेगा…भेड़िया तो भेड़िया होता है…वो अपनी प्रकृति नहीं बदल सकता ! जरा सोचो तुम्हारी चुप्पी ने कितने निर्दोष भेड़ो की जान ले ली। अगर तुमने पहले ही सच बोलने की हिम्मत दिखाई होती तो आज सब कुछ कितना अच्छा होता.?”
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दोस्तों, ज़िन्दगी में ऐसे कई मौके आते हैं जहाँ हमारी थोड़ी सी हिम्मत एक बड़ा फर्क डाल सकती है पर उस भेड़ की तरह हममें से ज्यादातर लोग तब तक चुप्पी मारकर बैठे रहते हैं जब तक मुसीबत अपने सर पे नहीं आ जाती। 
चलिए इस कहानी से प्रेरणा लेते हुए हम सही समय पर सच बोलने की हिम्मत दिखाएं और अपने देश को भ्रष्टाचार, आतंकवाद और बलात्कार जैसे भेड़ियों से मुक्त कराएं !!

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एक घर के पास काफी दिन एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था। 
वहा रोज मजदुरोंके छोटे बच्चे एकदुसरोंकी शर्ट पकडकर रेल-रेल का खेल खेलते थे।

रोज कोई इंजिन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते थे...

इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल  जाते,
पर...
केवल चङ्ङी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए गार्ड बनता था।

उनको रोज़ देखने वाले एक व्यक्ति ने  कौतुहल से गार्ड बननेवाले बच्चे को बुलाकर पुछा,

"बच्चे, तुम रोज़ गार्ड बनते हो। तुम्हें कभी इंजिन, कभी डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती?"

इस पर वो बच्चा बोला...

"बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है। तो मेरे पिछले वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे? और मेरे पिछे कौन खड़ा रहेगा?

इसिलए मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हुँ।

"ये बोलते समय मुझे उसके आँखों में पानी दिखाई दिया।

आज वो बच्चा मुझे जीवन का एक बड़ा पाठ पढ़ा गया...

*अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उस में कोई न कोई कमी जरुर रहेगी।*

वो बच्चा माँ-बाप से ग़ुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था। वैसे न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूंढा।

हम कितना रोते है?
कभी अपने साँवले रंग के लिए, कभी छोटे क़द के लिए, कभी पड़ौसी की कार, कभी पड़ोसन के गले का हार, कभी अपने कम मार्क्स, कभी अंग्रेज़ी, कभी पर्सनालिटी, कभी नौकरी मार तो कभी धंदे में मार...

हमें इससे बाहर आना पड़ता है।

*ये जीवन है... इसे ऐसे ही जीना पड़ता है।*

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एक पोस्टमैन ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा,
"चिट्ठी ले लीजिये।"
अंदर से एक बालिका की आवाज आई,
"आ रही हूँ।"
लेकिन तीन-चार मिनट तक कोई न आया तो पोस्टमैन ने फिर कहा,
"अरे भाई! मकान में कोई है क्या, अपनी चिट्ठी ले लो।"
लड़की की फिर आवाज आई,"पोस्टमैन साहब, दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ। "पोस्टमैन ने कहा,"नहीं,मैं खड़ा हूँ,रजिस्टर्ड चिट्ठी है,पावती पर तुम्हारे साइन चाहिये।"
करीबन छह-सात मिनट बाद दरवाजा खुला। पोस्टमैन इस देरी के लिए झल्लाया हुआ तो था ही और उस पर चिल्लाने वाला था ही लेकिन, दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया !! सामने एक अपाहिज कन्या जिसके पांव नहीं थे, सामने खड़ी थी।
पोस्टमैन चुपचाप पत्र देकर और उसके साइन लेकर चला गया। हफ़्ते,दो हफ़्ते में जब कभी उस लड़की के लिए डाक आती, पोस्टमैन एक आवाज देता और जब तक वह कन्या न आती तब तक खड़ा रहता। एक दिन लड़की ने पोस्टमैन को नंगे पाँव देखा।
दीपावली नजदीक आ रही थी। उसने सोचा पोस्टमैन को क्या ईनाम दूँ।
एक दिन जब पोस्टमैन डाक देकर चला गया, तब उस लड़की ने,जहां मिट्टी में पोस्टमैन के पाँव के निशान बने थे,उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया। अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवा लिये।
दीपावली आई और उसके अगले दिन पोस्टमैन ने गली के सब लोगों से तो ईनाम माँगा और सोचा कि अब इस बिटिया से क्या इनाम लेना? पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ।
उसने दरवाजा खटखटाया।
अंदर से आवाज आई,
"कौन?
"पोस्टमैन, उत्तर मिला।
बालिका हाथ में एक गिफ्ट पैक लेकर आई और कहा, "अंकल,मेरी तरफ से दीपावली पर आपको यह भेंट है।
"पोस्टमैन ने कहा," तुम तो मेरे लिए बेटी के समान हो,
तुमसे मैं गिफ्ट कैसे लूँ? "कन्या ने आग्रह किया कि मेरी इस गिफ्ट के लिए मना नहीं करें।
"ठीक है कहते हुए पोस्टमैन ने पैकेट ले लिया। बालिका ने कहा, "अंकल इस पैकेट को घर ले जाकर खोलना।
घर जाकर जब उसने पैकेट खोला तो विस्मित रह गया, क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते थे। उसकी आँखें भर आई।
अगले दिन वह ऑफिस पहुंचा और पोस्टमास्टर से फरियाद की कि उसका तबादला फ़ौरन कर दिया जाए।
पोस्टमास्टर ने कारण पूछा, तो पोस्टमैन ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखों और
रुंधे कंठ से कहा, "आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा। उस अपाहिज बच्ची ने तो मेरे नंगे पाँवों को तो जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा?"
संवेदनशीलता का यह श्रेष्ठ दृष्टांत है। संवेदनशीलता यानि,दूसरों के दुःख-दर्द को समझना,अनुभव करना और उसके दुःख-दर्द में भागीदारी करना,उसमें शरीक होना। यह ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अधूरा है।
ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमें संवेदनशीलता रूपी आभूषण प्रदान करें ताकि हम दूसरों के दुःख-दर्द को कम करने में योगदान कर सकें।संकट की घड़ी में कोई यह नहीं समझे कि वह अकेला है,अपितु उसे महसूस हो कि सारी मानवता उसके साथ है।🙏🙏

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महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। भीष्म पितामह शरशैया पर लेटे धर्मोपदेश दे रहे थे। युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ पितामह के चरणों के समीप बैठे थे और उनके उपदेश ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। तभी द्रौपदी वहां आई और उसने पितामह से प्रश्न किया, 'पितामह! जब भरी सभा में दुःशासन मेरा चीरहरण कर रहा था उस समय आपने कौरवों को धर्मोपदेश क्यों नहीं दिया? उस समय आपने मेरी सहायता क्यों नहीं की? उस समय आपका ज्ञान और विवेक कहां चला गया था?'

द्रौपदी के स्वर की तीव्रता से अप्रभावित भीष्म पितामह ने कहा, 'पुत्री, तुम ठीक कहती हो कि मैंने कौरवों को धर्मोपदेश नहीं दिया और न ही तुम्हारी सहायता की। मैंने विवेक और ज्ञान का उपयोग नहीं किया, लेकिन इसका असली कारण यह है कि मैं उस समय दुर्योधन का पापपूर्ण अन्न खा रहा था। उसी पापपूर्ण अन्न के प्रभाव के चलते मैं अपने ज्ञान और विवेक का प्रयोग कर तुम्हारी सहायता नहीं कर पाया।'

द्रौपदी ने फिर प्रश्न किया, 'लेकिन पितामह फिर आज कैसे यह ज्ञान और विवेक प्रकट हो रहा है?' 'पुत्री, आज अर्जुन ने अपने बाणों से मेरे शरीर का सारा कलुषित रक्त बाहर निकाल दिया है जो पाप के अन्न से निर्मित हुआ था। पापमय अन्न से निर्मित रक्त के निकल जाने से मेरी बुद्धि सजग हो गई और विवेक जागृत हो गया है।' पितामह ने समझाते हुए कहा। यदि हम भी चाहते हैं कि हमारी बुद्धि सजग और सचेष्ट रहे तथा मन सदैव सकारात्मक सोच की ओर अग्रसर रहे तो हमें अपनी आजीविका का मूल्यांकन कर उसमें अपेक्षित सुधार करना ही होगा और नई आजीविका को ग्रहण करने से पूर्व यह सुनिश्चित करना होगा कि यह सम्यक् अर्थात् हर प्रकार से उचित आजीविका ही हो। ऐसी जीवनवृत्ति जिससे समाज के किसी भी अंग पर दुष्प्रभाव न पड़े सम्यक् आजीविका है।

उपरोक्त बात १००% सत्य है , यदि हराम दाना पेट मे गया तो आपके कर्मो मे उसका असर जरूर आएगा । ( हराम दाना - बिना मेहनत की कमाई)
अब हमे आकलन करना है कही मै भी हराम दाना तो नही खा रहा । 
साथियों से निवेदन है विद्यालय मे ज्यादा से ज्यादा समय शिक्षण को देकर अपनी कमाई को हलाल बनाए । 
अन्यथा वह कमाई अपने बच्चो के पेट मे जाकर उन्हे सत्य से विमुख कर देगी‌।

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 *समय की पाबंदी*
बात साबरमती आश्रम में गांधी जी के प्रवास के दिनों की है। एक दिन एक गाँव के कुछ लोग बापू के पास आए और उनसे कहने लगे, "बापू कल हमारे गाँव में एक सभा हो रही है, यदि आप समय निकाल कर जनता को देश की स्थिति व स्वाधीनता के प्रति कुछ शब्द कहें तो आपकी कृपा होगी।"

गांधी जी ने अपना कल का कार्यक्रम देखा और गाँव के लोगों के मुखिया से पूछा, "सभा के कार्यक्रम का समय कब है?"
मुखिया ने कहा, "हमने चार बजे निश्चित कर रखा है।"
गांधी जी ने आने की अपनी अनुमति दे दी।
मुखिया बोला, "बापू मैं गाड़ी से एक व्यक्ति को भेज दूँगा, जो आपको ले आएगा। आपको अधिक कष्ट नहीं होगा।
गांधी जी मुस्कराते हुए बोले, "अच्छी बात है, कल निश्चित समय मैं तैयार रहूँगा।"
अगले दिन जब पौने चार बजे तक मुखिया का आदमी नहीं पहुँचा तो गांधी जी चिंतित हो गए। उन्होंने सोचा अगर मैं समय से नहीं पहुँचा तो लोग क्या कहेंगे। उनका समय व्यर्थ नष्ट होगा।

गांधी जी ने एक तरीक़ा सोचा और उसी के अनुसार अमल किया। कुछ समय पश्चात मुखिया गांधी जी को लेने आश्रम पहुँचा तो गांधी जी को वहाँ नहीं पाकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। लेकिन वह क्या कर सकते थे। मुखिया सभा स्थल पर पहुँचा तो उन्हें यह देख कर और अधिक आश्चर्य हुआ कि गांधी जी भाषण दे रहे हैं और सभी लोग तन्मयता से उन्हें सुन रहे हैं।

भाषण के उपरांत मुखिया गांधी जी से मिला और उनसे पूछने लगा, "मैं आपको लेने आश्रम गया था लेकिन आप वहाँ नहीं मिले फिर आप यहाँ तक कैसे पहुँचे?"

गांधी जी ने कहा, "जब आप पौने चार बजे तक नहीं पहुँचे तो मुझे चिंता हुई कि मेरे कारण इतने लोगों का समय नष्ट हो सकता है इसलिए मैंने साइकिल उठाई और तेज़ी से चलाते हुए यहाँ पहुँचा।"

मुखिया बहुत शर्मिंदा हुआ। गांधी जी ने कहा, *"समय बहुत मूल्यवान होता है। हमें प्रतिदिन समय का सदुपयोग करना चाहिए। किसी भी प्रगति में समय महत्वपूर्ण होता है।"*

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एक राजा था जिसे राज भोगते काफी समय हो गया था बाल भी सफ़ेद होने लगे थे । एक दिन उसने अपने दरबार मे उत्सव रखा । 
उत्सव मे मुजरा करने वाली और अपने गुरु को बुलाया । दूर देश के राजाओं को भी । 
राजा ने कुछ मुद्राए अपने गुरु को दी जो बात मुजरा करने वाली की अच्छी लगेगी वह मुद्रा गुरु देगा।

सारी रात मुजरा चलता रहा । सुबह होने वाली थीं, मुज़रा करने वाली ने देखा मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है उसको जगाने के लियें मुज़रा करने वाली ने एक दोहा पढ़ा ,

" बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिहाई । 
एक पलक के कारने, ना कलंक लग जाए। "

अब इस दोहे का अलग अलग व्यक्तियों ने अलग अलग अपने अपने अनुरूप अर्थ निकाला ।

* तबले वाला सतर्क हो  बजाने लगा ।
* जब ये बात गुरु ने सुनी,  गुरु ने सारी मोहरे उस मुज़रा करने वाली को दे दी

* वही दोहा उसने फिर पढ़ा तो राजा के लड़की ने अपना नवलखा हार दे दिया ।

* उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के लड़के ने अपना मुकट उतारकर दे दिया ।

* वही दोहा दोहराने लगी राजा ने कहा बस कर एक दोहे से तुमने वेश्या होकर सबको लूट लिया है ।

# जब ये बात राजा के गुरु ने सुनी गुरु के नेत्रो मे जल आ गया और कहने लगा, "  राजा इसको तू वेश्या न कह, ये मेरी गुरू है  । इसने मुझें मत दी है कि मै सारी उम्र जंगलो मे भक्ति करता रहा और आखरी समय मे मुज़रा देखने आ गया हूँ  । 
भाई मै तो चला।

# राजा की लड़की ने कहा, " आप मेरी शादी नहीं कर रहे थे,  आज मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था । इसनें मुझे सुमति दी है कि कभी तो तेरी शादी होगी । क्यों अपने पिता को कलंकित करती है ? "

# राजा के लड़के ने कहा, " आप मुझे राज नहीं दे रहे थे । मैंने आपके सिपाहियो से मिलकर आपका क़त्ल करवा देना था । इसने समझाया है कि आखिर राज तो तुम्हे ही मिलना है । क्यों अपने पिता के खून का इलज़ाम अपने सर लेते हो?

# जब ये बातें राजा ने सुनी तो राजा ने सोचा क्यों न मै अभी राजतिलक कर दूँ , गुरु भी मौजूद है । 
उसी समय राजतिलक कर दिया और लड़की से कहा बेटा, " मैं आपकी शादी जल्दी कर दूँगा। "

# मुज़रा करने वाली कहती है , " मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, मै तो ना सुधरी। आज से मै अपना धंधा बंद करती हूँ। 
हे प्रभु ! आज से मै भी तेरा नाम सुमिरन करुँगी ।

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*मृत्यु से भय कैसा*

राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ। अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था। तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।
राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया। संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी वर्षा पड़ने लगी। जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा।

रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया। वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी । वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था। अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था। बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।

उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की।

बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी-कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं। इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ।। इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता। मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।

राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। उसका काम तो बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है।

बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी, पर सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहरा दिया।

राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोने में झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा। अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास करने की बात सोचने लगा।

वह बहेलिये से और ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा। राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर विवाद खड़ा हो गया।
कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा,” परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा के लिए रहने के लिए झंझट करना उचित था ? ”
परीक्षित ने उत्तर दिया, *”भगवन् ! वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइये ? वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है। उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है।”*
श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा,” हे राजा परीक्षित ! वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। इस मल-मूल की गठरी देह ( शरीर ) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है ?
राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।

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विश्व विजेता सिकन्दर के पास अपार सम्पदा थी । कहते है सत्तर ऊंटो के ऊपर उसके खजाने की चाबियां चलती थी । 
अपनी विजय यात्रा के दॊरान उसका क ई विद्वानों ओर धर्मगुरूओं से मिलना हुआ। जिसके कारण उसका झुकाव अध्यात्म की ओर हो गया।

जब सिकन्दर मरा तो उसने नसीहत की कि मेरे मरने पर मेरे दोनो हाथ जनाजे के बाहर निकाल देना ।

ताकि दुनिया देख सके सारी दुनिया को जीतने वाला सिकन्दर इस दुनिया से खाली हाथ जा रहा है।

" सारी जिन्दगी गुजार दी कमाने मे, ओर साथ दो गज कफन ले गया। "

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एक राजा बड़ा लालची था. उसकी रियासत बड़ी थी लेकिन खजाने को भरने का लोभ इतना अधिक था कि वह जनता पर तरह-तरह के नए कर लगाया करता. प्रजा परेशान थी.
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एक संत ने उस नगर में डेरा डाला. लोग उनके प्रवचन सुनन आने लगे. उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक हो गई. राजा को भी सूचना मिला. वह भी आया और संत से प्रभावित हुआ.
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राजा ने संत को दरबार में आकर दरबारियों को उपदेश देने का निमंत्रण दिया. संत ने स्वीकार कर लिया. उन्होंने राजा के बारे में लोगो से सुन रखा था. इसलिए उन्होंने सबसे पहले राजा को ही राह पर लाने की सोची.
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संत दरबार में गए. रास्ते में से उन्होंने कुछ कंकड बीने और अपने अंगवस्त्र में लपेटकर रख लिए. वह दरबार में बैठे थे उस दौरान कंकड कपड़े में से निकलकर दरबार में बिखर गिर गए.
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राजा ने पूछा- महात्माजी आपने ये कंकड क्यों साथ रखे थे. संतजी बोले- ये मेरी संपत्ति हैं. मैं इसे जमा कर रहा हूं. मरने के बाद भगवान को भेंट करूंगा इसलिए इसे सदा साथ रखता हूं.
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राजा हंसा- महात्माजी मैं तो आपको बड़ा ज्ञानी समझता था. आप जैसा ज्ञानी यह कहे कि वह मरने के बाद कुछ लेकर ऊपर जा सकता है तो बड़ी हंसी आती है. ऐसा कभी होता है क्या !
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संत बोले- यदि सचमुच ऐसा नहीं होता तो तुम प्रजा का खून चूसकर इतना धन क्यों इकठ्ठा कर रहे हो. क्या ईश्वर की तुम पर विशेष कृपा है जो इसे साथ ले जाने का प्रबंध करेंगे. राजा लज्जित हो गया. 
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बात सोचने की है. तृष्णा का कोई अंत नहीं. इच्छाएं तो कहीं जाकर रूकेंगी ही नहीं. लोलुपता तो असीम है. बेहतर है धन संग्रह के बदले, पुण्य संग्रह किया जाए. एक यही सच्चा धन है जो हमारे साथ जाएगा.
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एक दिन एक व्यक्ति ऑटो से रेलवे स्टेशन जा रहा था। ऑटो वाला बड़े आराम से ऑटो चला रहा था कि अचानक ही एक कार पार्किंग से निकलकर रोड़ पर आ गयी। ऑटो चालक ने तेजी से ब्रेक लगाया और कार, ऑटो से टकराते टकराते बची।
कार चालक गुस्से में कार से निकला और ऑटो वाले को ही भला बुरा कहने लगा जबकि गलती कार- चालक की खुद की थी।
ऑटो वाले ने कार वाले की बातों पर गुस्सा नहीं किया और उल्टा मुस्कराते हुए आगे बढ़ गया।
ऑटो में बैठे व्यक्ति को कार वाले की हरकत पर गुस्सा आ रहा था और उसने ऑटो वाले से पूछा तुमने उस कार वाले को बिना कुछ कहे ऐसे ही क्यों जाने दिया। उसने तुम्हें भला बुरा कहा जबकि गलती तो उसकी थी। हमारी किस्मत अच्छी है, नहीं तो उसकी वजह से हम अभी अस्पताल में होते।
ऑटो वाले ने कहा साहब बहुत से लोग गार्बेज ट्रक (कूड़े का ट्रक) की तरह होते हैं। वे बहुत सारा कूड़ा अपने दिमाग में भरे हुए चलते हैं – हमेशा निराशा, क्रोध और चिंता से भरे हुए नकारात्मक रवैया अपनाते हैं । जब उनके दिमाग में निराशा रूपी कूड़ा बहुत अधिक हो जाता है तो वे अपना बोझ हल्का करने के लिए इसे दूसरों पर फेंकने का मौका ढूँढ़ने लगते हैं ।
इसलिए मैं ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखता हूँ और उन्हें दूर से ही मुस्कराकर अलविदा कह देता हूँ क्योंकि अगर उन जैसे लोगों द्वारा गिराया हुआ कूड़ा अगर मैंने स्वीकार कर लिया तो मैं भी एक गार्बेज ट्रक बन जाऊँगा और अपने साथ साथ आसपास के लोगों पर भी निराशा रूपी कूड़ा गिराता रहूँगा।
जिंदगी बहुत छोटी है जो हमसे अच्छा व्यवहार करते है उन्हें धन्यवाद कहो और जो हमसे अच्छा व्यवहार नहीं करते, उन्हें मुस्कुराकर माफ़ कर दो।
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एक बार की बात है एक बढ़ई था। वह दूर किसी शहर में एक सेठ के यहाँ काम करने गया। एक दिन काम करते-करते उसकी आरी टूट गयी। बिना आरी के वह काम नहीं कर सकता था, और वापस अपने गाँव लौटना भी मुश्किल था, इसलिए वह शहर से सटे एक गाँव पहुंचा। इधर-उधर पूछने पर उसे लोहार का पता चल गया।

वह लोहार के पास गया और बोला-

भाई मेरी आरी टूट गयी है, तुम मेरे लिए एक अच्छी सी आरी बना दो।

लोहार बोला, “बना दूंगा, पर इसमें समय लगेगा, तुम कल इसी वक़्त आकर मुझसे आरी ले सकते हो।”

बढ़ई को तो जल्दी थी सो उसने कहा, ” भाई कुछ पैसे अधिक ले लो पर मुझे अभी आरी बना कर दे दो!”

“बात पैसे की नहीं है भाई…अगर मैं इतनी जल्दबाजी में औजार बनाऊंगा तो मुझे खुद उससे संतुष्टि नहीं होगी, मैं औजार बनाने में कभी भी अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखता!”, लोहार ने समझाया।

बढ़ई तैयार हो गया, और अगले दिन आकर अपनी आरी ले गया।

आरी बहुत अच्छी बनी थी। बढ़ई पहले की अपेक्षा आसानी से और पहले से बेहतर काम कर पा रहा था।

बढ़ई ने ख़ुशी से ये बात अपने सेठ को भी बताई और लोहार की खूब प्रसंशा की।

सेठ ने भी आरी को करीब से देखा!

“इसके कितने पैसे लिए उस लोहार ने?”, सेठ ने बढ़ई से पूछा।

“दस रुपये!”

सेठ ने मन ही मन सोचा कि शहर में इतनी अच्छी आरी के तो कोई भी तीस रुपये देने को तैयार हो जाएगा। क्यों न उस लोहार से ऐसी दर्जनों आरियाँ बनवा कर शहर में बेचा जाये!

अगले दिन सेठ लोहार के पास पहुंचा और बोला, “मैं तुमसे ढेर सारी आरियाँ बनवाऊंगा और हर आरी के दस रुपये दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है… आज के बाद तुम सिर्फ मेरे लिए काम करोगे। किसी और को आरी बनाकर नहीं बेचोगे।”

“मैं आपकी शर्त नहीं मान सकता!” लोहार बोला।

सेठ ने सोचा कि लोहार को और अधिक पैसे चाहिए। वह बोला, “ठीक है मैं तुम्हे हर आरी के पन्द्रह रूपए दूंगा….अब तो मेरी शर्त मंजूर है।”

लोहार ने कहा, “नहीं मैं अभी भी आपकी शर्त नहीं मान सकता। मैं अपनी मेहनत का मूल्य खुद निर्धारित करूँगा। मैं आपके लिए काम नहीं कर सकता। मैं इस दाम से संतुष्ट हूँ इससे ज्यादा दाम मुझे नहीं चाहिए।”

“बड़े अजीब आदमी हो…भला कोई आती हुई लक्ष्मी को मना करता है?”, व्यापारी ने आश्चर्य से बोला।

लोहार बोला, “आप मुझसे आरी लेंगे फिर उसे दुगने दाम में गरीब खरीदारों को बेचेंगे। लेकिन मैं किसी गरीब के शोषण का माध्यम नहीं बन सकता। अगर मैं लालच करूँगा तो उसका भुगतान कई लोगों को करना पड़ेगा, इसलिए आपका ये प्रस्ताव मैं स्वीकार नहीं कर सकता।”

सेठ समझ गया कि एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति को दुनिया की कोई दौलत नहीं खरीद सकती। वह अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है।

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एक बार एक बड़े राजा ने एक छोटे से राज्य पर हमला बोल दिया । छोटे राज्य  के सैनिक भयभीत थे और युद्ध मैदान में उतरने से घबरा रहे थे । तभी सेनापति के मन में एक विचार आया । वह अपनी सेना को राज्य के इष्टदेवता के मंदिर में ले गया और सैनिकों को कहा कि हम इष्ट देवता से पूछते हैं कि हम हारेंगे या जीतेंगे ।

यह कह कर उसने अपनी जेब से सिक्का निकला और हवा में उछाल कर कहा कि यदि हेड आता है, तो हमारे इष्ट हमारी जीत बताते हैं और टेल आया तो हमारी हार । सिक्का जमीन पर गिरा तो सभी सैनिक उत्साह पूर्वक देखने लगे ।

यह देख कर सबमें जोश भर आया कि हेड आया है ।

अर्थात उसके इष्ट उनकी जीत की भविष्यवाणी कर रहें हैं । जोश और विश्वास से भरी इस छोटी सेना ने आगे बढ़कर शत्रु की बड़ी सेना पर हमला बोल दिया । बड़ी सेना उन सैनिकों का हौसला देख कर घबरा गई और भाग खड़ी हुई । जीत के बाद वापसी में सेना अपने इष्टदेव के मंदिर में धन्यवाद कर रही थी ।

और सेनापति उस सिक्के को देख रहा था, जिसके दोनों ओर हेड का ही निशान था ।

दोस्तों आपका नज़रिया ही तय करता है कि आप जीवन में ख़ुशी, सफलता और सम्पन्नता के किस स्तर को प्राप्त करेंगे । नजरिया बदलकर आप अपना जीवन बदल सकते हैं ।

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*वह अड़ा, यह झुका*
नदी के किनारे एक विशाल शमी का वृक्ष था। एक बैंत का पेड़ भी था ,जिसकी लताऐं फैली हुई थी। एक दिन नदी में भयंकर बाढ़ आयी।प्रवाह प्रचंड था।शमी सोचता था ,'मेरी जड़े तो गहरी और मजबूत है।मेरा क्या नुकसान होगा ।'इसी बीच लहरों ने जड़ों के नीचे की मिट्टी काटनी शुरु कर दी । हर लहर मिट्टी खिसका देती और बहा ले जाती।देखते- देखते वृक्ष उखड़ गया।देखने वालों ने अगले दिन पाया कि वृक्ष उखड़ा पड़ा है।उस की जड़ों ने हाथ खड़े कर दिए ,और वह सब शांत हो चुकी नदी के किनारे असहाय पड़ा था। बांस का पेड़ भी उसी वक्त बाढ़ से जूझा जब बाढ़ का प्रभाव तेज हुआ तो वह झुक गया और मिट्टी की सतह पर लेट गया।गरजता पानी उसके ऊपर से गुजर गया ।बाढ़ उतरने पर उसने पाया कि वह तो सुरक्षित है,पर उसका पड़ोसी उखड़ा पड़ा है। देखने वाले चर्चा कर रहे थे कि *अहंकारी ,अक्खड़ और अदूरदर्शी जो समय की गति को नहीँ पहचान पाते,इसी तरह समय के प्रवाह से उखड़ जाते है।जो भी विनम्र है, झुकते है,अनावश्यक टकराते नहीँ ,तालमेल बैठा लेते है, वे अपनी सज्जनता का सुफल पाकर रहते है।

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एक बार एक Science की Researchप्रयोगशाला में एक experiment किया गया। एक बड़े शीशे के टैंक में बहुत सारी छोटी छोटी मछलियाँ छोड़ी गयीं और फिर ढक्कन बंद कर दिया। अब थोड़ी देर बाद एक बड़ी शार्क
मछली को भी टैंक में छोड़ा गया लेकिन शार्क और छोटी मछलियों के बीच में एक काँच की दीवार बनायीं गयी ताकि वो एक दूसरे से दूर रहें। शार्क मछली की एक खासियत होती है कि वो छोटी छोटी मछलियों को खा जाती है।
अब जैसे ही शार्क को छोटी मछलियाँ दिखाई
दीं वो झपट कर उनकी ओर बढ़ी।जैसे ही शार्क मछलियों की ओर गयी वो कांच की दीवार से टकरा गयी और मछलियों तक नहीं पहुँच पायी। शार्क को कुछ समझ नहीं आया वो फिर से छोटी मछलियों की ओर दौड़ी लेकिन
इस बार भी वो विफल रही। शार्क को बहुत गुस्सा आया अबकी बार वो पूरी ताकत से छोटी मछलियों पे झपटी लेकिन फिर से कांच की दीवार बाधा बन गयी। कुछ घंटों तक यही क्रम चलता रहा, शार्क बार बार मछलियों पर हमला करती और हर बार विफल हो जाती। कुछ देर बाद शार्क को लगा कि वह मछलियों को नहीं खा सकती, यही
सोचकर शार्क ने हमला करना बंद कर दिया वो थक कर आराम से पानी में तैरने लगी। अब कुछ देर Scientists ने उस कांच की दीवार को शार्क और मछलियों के बीच से हटा दिया उन्हें उम्मीद थी कि शार्क अब सारी मछलियों को खा जाएगी। लेकिन ये क्या, शार्क ने हमला नहीं किया ऐसा लगा जैसे उसने मान लिया हो कि अब वो छोटी मछलियों को नहीं खा पायेगी। काफी देर गुजरने के बाद भी शार्क खुले टैंक में भी मछलियों पर हमला नहीं कर रही थी।
इसे कहते हैं – सोच। कहीं आप भी शार्क तो नहीं? हाँ! हममें से काफी लोग उस शार्क की तरह ही हैं जो किसी कांच जैसी दीवार की वजह से ये मान बैठे हैं कि हम कुछ नहीं कर सकते।और हममें से काफी लोग तो ऐसे जरूर होंगे जो शार्क की तरह कोशिश करना भी छोड़ चुके
होंगे। लेकिन सोचिये जब टैंक से दिवार हटा दी गयी फिर भी शार्क ने हमला नहीं किया क्यूंकि वो हार मान चुकी थी, कहीं आपने भी तो हार नहीं मान ली? कोई परेशानी या अवरोध हमेशा नहीं रहता , क्या पता आपकी काँच की दीवार भी हट चुकी हो लेकिन आप अपनी सोच की वजह से प्रयास ही नहीं कर रहे। आप भी कहीं ना कहीं ये मान बैठे हैं कि मैं नहीं कर सकता। पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि एक दिन आपकी दीवार भी जरूर हटेगी या हट चुकी होगी। जरुरत है तो सिर्फ आपके पुनः प्रयास की।तो सोचिये मत, प्रयास करते रहिये ।आप जरूर कामयाब होंगें।

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एक युवक ने किसी बड़ी कंपनी में मैनेजर के पद के लिए आवेदन किया. 
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उसने पहला इंटरव्यू पास कर लिया और उसे फाइनल इंटरव्यू के लिए कंपनी के डाइरेक्टर के पास भेजा गया. 
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डाइरेक्टर ने युवक के CV में देखा कि उसकी शैक्षणिक योग्यताएं शानदार थीं.
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डाइरेक्टर ने युवक से पूछा, क्या तुम्हें स्कूल-कॉलेज में स्कॉलरशिप मिलती थी ?
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“नहीं”, युवक ने कहा.
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“तुम्हारी फीस कौन भरता था ?”
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“मेरे माता-पिता काम करते थे और मेरी फीस चुकाते थे.”
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“वो क्या काम करते थे ?”
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“वो कपड़ों की धुलाई करते थे… अभी भी यही काम करते हैं.”
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डाइरेक्टर ने युवक से अपने हाथ दिखाने के लिए कहा. 
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युवक ने डाइरेक्टर को अपने हाथ दिखाए.
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उसके हाथ बहुत सुंदर और मुलायम थे.
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“क्या तुमने कभी कपड़े धोने में अपने माता-पिता की मदद नहीं की ?”
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“कभी नहीं. वे यही चाहते थे कि मैं बहुत अच्छे से पढाई करूं. 
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मुझे यह काम करते नहीं बनता था और वे इसे बड़ी तेजी से कर सकते थे.”
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डाइरेक्टर ने युवक से कहा, “तुम एक काम करो…
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आज जब तुम घर जाओ तो अपने माता-पिता के हाथ साफ करो और कल मुझसे फिर मिलो.”
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युवक उदास हो गया. जब वह अपने घर पहुंचा, उसने अपने माता-पिता से कहा कि वह उनके हाथ धोना चाहता है. 
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माता-पिता को सुनकर अजीब-सा लगा. वे झेंप गए लेकिन उन्हें मिलीजुली सुखकर अनुभूतियां भी हुईं. 
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युवक ने इनके हाथों को अपने हाथ में लेकर साफ करना शुरु किया. 
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उसकी आंखों से आंसू बहने लगे.
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जीवन में पहली बार उसे यह अहसास हुआ कि उसके माता-पिता के हाथ झुर्रियों से भर गए थे और ज़िंदगी भर कठोर काम करने के कारण वे रूखे और चोटिल हो गए थे. 
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उन हाथों के जख्म इतने नाज़ुक थे कि सहलाने पर उनमें टीस उठने लगी.
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पहली मर्तबा युवक को यह बात गहराई से महसूस हुई कि उसे पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाने के लिए उसके माता-पिता इस उम्र तक कपड़े धोते रहे ताकि उसकी फीस चुका सकें
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माता-पिता ने अपने हाथों के जख्मों से अपने बेटे की स्कूल-कॉलेज की पढाई की फीस चुकाई और उसकी हर सुख-सुविधा का ध्यान रखा.
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उनके हाथ धोने के बाद युवक ने खामोशी से धुलने से छूट गए कपड़ों को साफ किया. 
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उस रात वे तीनों साथ बैठे और देर तक बातें करते रहे.
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अगले दिन युवक डाइरेक्टर से मिलने गया.
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डाइरेक्टर ने युवक की आंखों में नमी देखी और उससे पूछा, “अब तुम मुझे बताओ कि तुमने घर में कल क्या किया और उससे क्या सीख ली ?”
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युवक ने कहा, “मैंने उनके हाथ धोए और धुलाई का बचा हुआ काम भी निबटाया. 
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अब मैं जान गया हूं कि उनकी करुणा का मूल्य क्या है.
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यदि वे यह सब न करते तो मैं आज यहां आपके सामने साथ नहीं बैठा होता.
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उनके काम में उनकी मदद करके ही मैं यह जान पाया हूं कि अपनी हर सुख-सुविधा को ताक पर रखकर परिवार के हर सदस्य का ध्यान रखना और उसे काबिल बनाना बहुत महत्वपूर्ण बात है और इसके लिए बड़ा त्याग करना पड़ता है.”
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डाइरेक्टर ने कहा, “यही वह चीज है जो मैं किसी मैनेजर में खोजता हूं. 
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मैं उस व्यक्ति को अपनी कंपनी में रखना चाहता हूं जो यह जानता हो कि किसी भी काम को पूरा करने के लिए बहुत तकलीफों से गुज़रना पड़ता है. 
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इस बात को समझने वाला व्यक्ति अधिक-से-अधिक रुपए-पैसे कमाने की होड़ में अपने जीवन को व्यर्थ नहीं करेगा. 
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मैं तुम्हें नौकरी पर रखता हूं.”
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जिन बच्चों को बहुत जतन और एहतियात सा पाला पोसा जाता है और जिनकी सुख सुविधा में कभी कोई कोर-कसर नहीं रखी जाती, 
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उन्हें यह लगने लगता है कि उनका हक हर चीज पर है और उन्हें उनकी पसंद की चीज किसी भी कीमत पर सबसे पहले मिलनी चाहिए. 
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ऐसे बच्चे अपने माता-पिता की मेहनत और उनके समर्पण का मूल्य नहीं जानते.
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यदि हम भी अपने बच्चों की हर ख़्वाहिश को पूरा करके उन्हें खुद से पनपने का मौका नही दे रहे हैं तो हम उनकी आनेवाली ज़िंदगी को बिगाड़ रहे हैं. 
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उन्हें बड़ा घर, महंगे खिलौने, और शानदार लाइफस्टाइल देना ही पर्याप्त नहीं है, उन्हें रोज मर्रा के काम खुद से करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. 
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उन्हें सुविधापूर्ण जीवन का गुलाम नहीं बनाना चाहिए.
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उनमें यह आदत डालनी चाहिए कि वे अपना भोजन कभी नहीं छोड़ें, अन्न का तिरस्कार नहीं करें और अपनी थाली खुद धोने के लिए रखने जाएं.
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हो सकता है कि आपके पास अपने बच्चों की सभी ज़रूरतें पूरा करने के लिए बहुत अधिक पैसा हो और घर में नौकर-चाकर लगें हों लेकिन उनमें दूसरों के प्रति संवेदना पनपाने के लिए आपको ऐसे कदम ज़रूर उठाने चाहिए. 
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उन्हें यह समझाना चाहिए कि उनके माता-पिता कितने भी संपन्न हों लेकिन एक दिन वे भी सबकी तरह बूढ़े हो जाएंगे और शायद उन्हें दूसरों की सहायता की ज़रूरत पड़ेगी.
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सभी बच्चों में यह बात विकसित करनी चाहिए कि वे दुनिया के हर व्यक्ति की जरूरतों, प्रयासों, और कठिनाइयों को समझें और उनके साथ मिलकर चलना सीखें ताकि हर व्यक्ति का हित हो.
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⚡कल रात एक ऐसा वाकया हुआ जिसने मेरी *ज़िन्दगी के कई पहलुओं को छू लिया*.
करीब 7 बजे होंगे, 
शाम को मोबाइल बजा ।
उठाया तो *उधर से रोने की आवाज*...
मैंने शांत कराया और पूछा कि *भाभीजी आखिर हुआ क्या*?
उधर से आवाज़ आई..
*आप कहाँ हैं??? और कितनी देर में आ सकते हैं*?
मैंने कहा:- *"आप परेशानी बताइये"*।
और "भाई साहब कहाँ हैं...?माताजी किधर हैं..?" "आखिर हुआ क्या...?"
लेकिन 
*उधर से केवल एक रट कि "आप आ जाइए"*, मैंने आश्वाशन दिया कि *कम से कम एक घंटा पहुंचने में लगेगा*. जैसे तैसे पूरी घबड़ाहट में पहुँचा;
देखा तो भाई साहब [हमारे मित्र जो जज हैं] सामने बैठे हुए हैं;
*भाभीजी रोना चीखना कर रही हैं* 12 साल का बेटा भी परेशान है; 9 साल की बेटी भी कुछ नहीं कह पा रही है।

मैंने भाई साहब से पूछा कि *""आखिर क्या बात है""*???

*""भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे थे ""*.

फिर भाभी जी ने कहा ये देखिये *तलाक के पेपर, ये कोर्ट से तैयार करा के लाये हैं*, मुझे तलाक देना चाहते हैं,
मैंने पूछा - *ये कैसे हो सकता है???. इतनी अच्छी फैमिली है. 2 बच्चे हैं. सब कुछ सेटल्ड है. ""प्रथम दृष्टि में मुझे लगा ये मजाक है""*.
लेकिन मैंने बच्चों से पूछा  *दादी किधर है*,
बच्चों ने बताया पापा ने उन्हें 3 दिन पहले *नोएडा के वृद्धाश्रम में शिफ्ट* कर दिया है.
मैंने घर के नौकर से कहा।

मुझे और भाई साहब को चाय पिलाओ;

कुछ देर में चाय आई. भाई साहब को *बहुत कोशिशें कीं चाय पिलाने की*.
लेकिन उन्होंने नहीं पी और कुछ ही देर में वो एक *"मासूम बच्चे की तरह फूटफूट कर रोने लगे "*बोले मैंने 3 दिन से कुछ भी नहीं खाया है. मैं अपनी 61 साल की माँ को कुछ लोगों के हवाले करके आया हूँ.
*पिछले साल से मेरे घर में उनके लिए इतनी मुसीबतें हो गईं कि पत्नी (भाभीजी) ने कसम खा ली*. कि *""मैं माँ जी का ध्यान नहीं रख सकती""*ना तो ये उनसे बात करती थी
और ना ही मेरे बच्चे बात करते थे. *रोज़ मेरे कोर्ट से आने के बाद माँ खूब रोती थी*. नौकर तक भी *अपनी मनमानी से व्यवहार करते थे*
माँ ने 10 दिन पहले बोल दिया.. बेटा तू मुझे *ओल्ड ऐज होम* में शिफ्ट कर दे.
मैंने बहुत *कोशिशें कीं पूरी फैमिली को समझाने की*, लेकिन *किसी ने माँ से सीधे मुँह बात नहीं की*.
*जब मैं 2 साल का था तब पापा की मृत्यु हो गई थी दूसरों के घरों में काम करके *""मुझे पढ़ाया. मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं जज हूँ""*. लोग बताते हैं माँ कभी दूसरों के घरों में काम करते वक़्त भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती थीं.
*उस माँ को मैं ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट करके आया हूँ*. पिछले 3 दिनों से

मैं *अपनी माँ के एक-एक दुःख को याद करके तड़प रहा हूँ,*जो उसने केवल मेरे लिए उठाये।

मुझे आज भी याद है जब.. 
*""मैं 10th की परीक्षा में अपीयर होने वाला था. माँ मेरे साथ रात रात भर बैठी रहती""*.

एक बार *माँ को बहुत फीवर हुआ मैं तभी स्कूल से आया था*. उसका *शरीर गर्म था, तप रहा था*. मैंने कहा *माँ तुझे फीवर है हँसते हुए बोली अभी खाना बना रही थी इसलिए गर्म है*.
लोगों से *उधार माँग कर मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी तक पढ़ाया*. मुझे *ट्यूशन तक नहीं पढ़ाने देती थीं*कि कहीं मेरा टाइम ख़राब ना हो जाए.  

       *कहते-कहते रोने लगे..और बोले--""जब ऐसी माँ के हम नहीं हो सके तो हम अपने बीबी और बच्चों के क्या होंगे""*.

हम जिनके *शरीर के टुकड़े हैं*,आज हम उनको *ऐसे लोगों के हवाले कर आये, ""जो उनकी आदत, उनकी बीमारी, उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते""*,
जब मैं ऐसी माँ के लिए कुछ नहीं कर सकता तो *"मैं किसी और के लिए भला क्या कर सकता हूँ".*

आज़ादी अगर इतनी प्यारी है और *माँ इतनी बोझ लग रही हैं, तो मैं पूरी आज़ादी देना चाहता हूँ*
.
जब *मैं बिना बाप के पल गया तो ये बच्चे भी पल जाएंगे*. इसीलिए मैं तलाक देना चाहता हूँ।

*सारी प्रॉपर्टी इन लोगों के हवाले* करके उस *ओल्ड ऐज होम* में रहूँगा. कम से कम मैं माँ के साथ रह तो सकता हूँ।

और अगर *इतना सब कुछ कर के ""माँ आश्रम में रहने के लिए मजबूर है"", तो एक दिन मुझे भी आखिर जाना ही पड़ेगा*.

माँ के साथ रहते-रहते आदत भी हो जायेगी. *माँ की तरह तकलीफ* तो नहीं होगी.

*जितना बोलते उससे भी ज्यादा रो रहे थे*.

बातें करते करते रात के 12:30 हो गए।

मैंने भाभीजी के चेहरे को देखा.
उनके *भाव भी प्रायश्चित्त और ग्लानि* से भरे हुए थे; मैंने ड्राईवर से कहा अभी हम लोग नोएडा जाएंगे।

भाभीजी और बच्चे हम सारे लोग नोएडा पहुँचे.
*बहुत ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला*. भाई साहब ने उस *गेटकीपर के पैर पकड़ लिए*, बोले मेरी माँ है, मैं उसको लेने आया हूँ,
चौकीदार ने कहा क्या करते हो साहब,
भाई साहब ने कहा *मैं जज हूँ,*
उस चौकीदार ने कहा:-

*""जहाँ सारे सबूत सामने हैं तब तो आप अपनी माँ के साथ न्याय नहीं कर पाये,
औरों के साथ क्या न्याय करते होंगे साहब"*।

इतना कहकर हम लोगों को वहीं रोककर वह अन्दर चला गया.
अन्दर से एक महिला आई जो *वार्डन* थी. 
उसने *बड़े कातर शब्दों में कहा*:-
"2 बजे रात को आप लोग ले जाके कहीं मार दें, तो

*मैं अपने ईश्वर को क्या जबाब दूंगी..*?"

मैंने सिस्टर से कहा  *आप विश्वास करिये*. ये लोग *बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे हैं*.
अंत में किसी तरह उनके कमरे में ले गईं. *कमरे में जो दृश्य था, उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हूँ.*

केवल एक फ़ोटो जिसमें *पूरी फैमिली* है और वो भी माँ जी के बगल में, जैसे किसी बच्चे को सुला रखा है.
मुझे देखीं तो उनको लगा कि बात न खुल जाए 
लेकिन जब मैंने कहा *हम लोग आप को लेने आये हैं, तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी*

आसपास के कमरों में और भी बुजुर्ग थे सब लोग जाग कर बाहर तक ही आ गए. 
*उनकी भी आँखें नम थीं*
कुछ समय के बाद चलने की तैयारी हुई. पूरे आश्रम के लोग बाहर तक आये. किसी तरह हम लोग आश्रम के लोगों को छोड़ पाये.
सब लोग इस आशा से देख रहे थे कि *शायद उनको भी कोई लेने आए, रास्ते भर बच्चे और भाभी जी तो शान्त रहे*.......

लेकिन भाई साहब और माताजी एक दूसरे की *भावनाओं को अपने पुराने रिश्ते पर बिठा रहे थे*.घर आते-आते करीब 3:45 हो गया.

👩 💐 *भाभीजी भी अपनी ख़ुशी की चाबी कहाँ है; ये समझ गई थी* 💐

मैं भी चल दिया. लेकिन *रास्ते भर वो सारी बातें और दृश्य घूमते रहे*.

👵 💐*""माँ केवल माँ है""* 💐👵

*उसको मरने से पहले ना मारें.*

*माँ हमारी ताकत है उसे बेसहारा न होने दें , अगर वह कमज़ोर हो गई तो हमारी संस्कृति की ""रीढ़ कमज़ोर"" हो जाएगी* , बिना रीढ़ का समाज कैसा होता है किसी से छुपा नहीं

अगर आपकी परिचित परिवार में ऐसी कोई समस्या हो तो उसको ये जरूर पढ़ायें, *बात को प्रभावी ढंग से समझायें , कुछ भी करें लेकिन हमारी जननी को बेसहारा बेघर न होने दें*, अगर *माँ की आँख से आँसू गिर गए तो *"ये क़र्ज़ कई जन्मों तक रहेगा"*, यकीन मानना सब होगा तुम्हारे पास पर *""सुकून नहीं होगा""* , सुकून सिर्फ *माँ के आँचल* में होता है उस *आँचल को बिखरने मत देना*।

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एक आदमी ने देखा कि एक
गरीब बच्चा उसकी कीमती
कार को बड़े गौर से निहार रहा है।
आदमी ने उस लड़के को कार में
बिठा लिया।
लड़के ने कहा:- आपकी कार
बहुत अच्छी है, बहुत कीमती
होगी ना ?
आदमी:- हाँ, मेरे भाई ने मुझे
गिफ्ट दी है।
लड़का (कुछ सोचते हुए):- वाह !
आपके भाई कितने अच्छे हैं ।
आदमी:- मुझे पता है तुम क्या
सोच रहे हो, तुम भी ऐसी कार
चाहते हो ना ?
लड़का:- नहीं ! मैं आपके भाई
की तरह बनना चाहता हूँ । जो
दूसरों को ख़ुशियाँ देते हैं ।
शिक्षा -
"अपनी सोच हमेशा ऊँची रखें,
दूसरों की अपेक्षाओं से कहीं
ज्यादा ऊँची" ।

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एक बालक अपनी दादी मां को एक पत्र लिखते हुए देख रहा था। अचानक उसने अपनी दादी मां से पूंछा, 
" दादी मां !" क्या आप मेरी शरारतों के बारे में लिख रही हैं ? आप मेरे बारे में लिख रही हैं, ना " 
यह सुनकर उसकी दादी माँ रुकीं और बोलीं , " बेटा मैं लिख तो तुम्हारे बारे में ही रही हूँ, 
लेकिन जो शब्द मैं यहाँ लिख रही हूँ उनसे भी अधिक महत्व इस पेन्सिल का है जिसे मैं इस्तेमाल कर रही हूँ। 
मुझे पूरी आशा है कि जब तुम बड़े हो जाओगे तो ठीक इसी पेन्सिल की तरह होगे। " 

यह सुनकर वह बालक थोड़ा चौंका और पेन्सिल की ओर ध्यान से देखने लगा, किन्तु उसे कोई विशेष बात 
नज़र नहीं आयी। वह बोला, " किन्तु मुझे तो यह पेन्सिल बाकी सभी पेन्सिलों की तरह ही दिखाई दे रही है।" 
इस पर दादी माँ ने उत्तर दिया, 
" बेटा ! यह इस पर निर्भर करता है कि तुम चीज़ों को किस नज़र से देखते हो। इसमें पांच ऐसे गुण हैं, जिन्हें 
यदि तुम अपना लो तो तुम सदा इस संसार में शांतिपूर्वक रह सकते हो। " 

1⃣" पहला गुण : तुम्हारे भीतर महान से महान उपलब्धियां प्राप्त करने की योग्यता है, किन्तु तुम्हें यह कभी 
भूलना नहीं चाहिए कि तुम्हे एक ऐसे हाथ की आवश्यकता है जो निरन्तर तुम्हारा मार्गदर्शन करे। हमारे 
लिए वह हाथ👆🏾💥 ईश्वर का हाथ है जो सदैव हमारा मार्गदर्शन करता रहता है। " 

2⃣दूसरा गुण : बेटा ! लिखते, लिखते, लिखते बीच में मुझे रुकना पड़ता है और फ़िर कटर से पेन्सिल ✏की नोक 
बनानी पड़ती है। इससे पेन्सिल को थोड़ा कष्ट तो होता है, किन्तु बाद में यह काफ़ी तेज़ हो जाती है और अच्छी 
चलती है। इसलिए बेटा ! तुम्हें भी अपने दुखों, अपमान और हार को बर्दाश्त करना आना चाहिए, धैर्य से सहन 
करना आना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से तुम एक बेहतर मनुष्य बन जाओगे। " 

3⃣" तीसरा गुण : बेटा ! पेन्सिल📝 हमेशा गलतियों को सुधारने के लिए रबर का प्रयोग करने की इजाज़त देती है। 
इसका यह अर्थ है कि यदि हमसे कोई गलती हो गयी तो उसे सुधारना कोई गलत बात नहीं है। बल्कि ऐसा 
करने से हमें न्यायपूर्वक अपने लक्ष्यों की ओर निर्बाध रूप से बढ़ने में मदद मिलती है। " 

4⃣" चौथा गुण : बेटा ! एक पेन्सिल की कार्य प्रणाली में ✏मुख्य भूमिका इसकी बाहरी लकड़ी की नहीं अपितु 
इसके भीतर के 'ग्रेफाईट' की होती है। ग्रेफाईट या लेड की गुणवत्ता जितनी अच्छी होगी,लेख उतना ही सुन्दर होगा। इसलिए बेटा ! तुम्हारे भीतर क्या हो रहा है, कैसे विचार चल रहे हैं, इसके प्रति सदा सजग रहो। " 

5⃣"अंतिम गुण : बेटा ! पेन्सिल📝 सदा अपना निशान छोड़ देती है। ठीक इसी प्रकार तुम कुछ भी करते हो तो तुम भी अपना निशान छोड़ देते हो। 
अतः सदा ऐसे कर्म करो जिन पर तुम्हें लज्जित न होना पड़े अपितु तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का सिर 
गर्व से उठा रहे। अतः अपने प्रत्येक कर्म के प्रति सजग रहो। " 
🙏🌸🌹💐🙏
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एक सिद्ध महात्मा से मिलने पहुंचे एक गरीब दम्पत्ति ने देखा कूड़े के ढेर पर सोने का चिराग पड़ा हुआ था ।
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दंपत्ति ने महात्मा से पूछा तो महात्मा ने बताया कि ये तीन इच्छायें पूरी करने वाला बेकार चिराग है...
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बहुत खतरनाक भी... जो इसको उठाकर ले जाता है वापस यहीं कूड़े में फेंक जाता है ।
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गरीब दम्पत्ति ने जाते समय वो चिराग उठा लिया और घर पहुंचकर उससे तीन वरदान मांगने बैठ गये ।
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दम्पत्ति गरीब थे और उन्होंने सबसे पहले दस लाख रूपये मांगकर चिराग को टेस्ट करने की सोची ।
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जैसे ही उन्होंने रूपये मांगे तभी दरवाजे पर दस्तक हुई... जाकर खोला तो एक आदमी रुपयों से भरा बैग और एक लिफाफा थमा गया ।
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लिफाफे में एक पत्र था जिसमे लिखा हुआ था कि मेरी कार से टकराकर आपके पुत्र की मृत्यु हो गयी जिसके पश्चात्ताप स्वरूप ये दस लाख रूपये भेज रहा हूँ मुझे माफ़ करियेगा ।
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अब दम्पत्ति को काटो तो खून नही.. पत्नी दहाड़े मार कर रोने लगी ।
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तभी पति को ख्याल आया और उसने चिराग से दूसरी इच्छा बोल दी कि उसका बेटा वापस आ जाये ।
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थोड़ी देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुयी और पूरे घर में अजीब सी आवाजें आने लगीं घर के बल्ब तेजी से जलने बुझने लगे उसका बेटा प्रेत बनकर वापस आ गया था ।
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दम्पत्ति ने प्रेतरूप देखा तो बुरी तरह डर गये , और हड़बड़ी में चिराग से तीसरी इच्छा के रूप में प्रेत रूपी पुत्र की मुक्ति मांग कर दी ।
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बेटे की मुक्ति के बाद रातों रात वो आश्रम पहुंचे चिराग को कूड़े के ढेर पर फेंक कर दुखी मन से वापस लौट आये ।
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मित्रों... हम सभी अपनी जिंदगी में उस दम्पत्ति की तरह हैं... हमारी इच्छायें बेहिसाब हैं... 
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जब एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी सताने लगती है और जब दूसरी पूरी हो जाये तो तीसरी ।
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इसलिए ईश्वर ने हमें जो भी दिया है उसमे संतुष्ट रहना चाहियें ।

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पैदल वापस घर आ रहा था ।
रास्ते में एक बिजली खंभे में एक कागज लगा हुआ था ।
'कृपया पढ़ें' ऐसा लिखा था ।
फुरसत में था ही, पास जाकर देखा - "इस रास्ते पर मैंने कल एक ₹50 का नोट गंवा दिया है । मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता । जिसे भी मिले कृपया इस पते पर दे सकते हैं ।" ...
यह पढ़कर पता नहीं क्यों उस पते पर जाने की इच्छा हुई । पता याद रखा । यह उस गली के आखिरी में एक झुग्गी झोपड़ी का है । वहाँ जाकर आवाज लगाया तो एक वृद्धा लाठी के सहारे धीरे-धीरे बाहर आई । मुझे मालूम हुआ कि वह अकेली रहती है । उसे ठीक से दिखाई नहीं देता ।
"माँ जी", मैंने कहा - "आपका खोया हुआ ₹50 मुझे मिला है उसे देने आया हूँ ।"
यह सुन वह वृद्धा रोने लगी ।
"बेटा, अभी तक करीब 50-60 व्यक्ति मुझे 50-50 ₹ दे चुके हैं । मै पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, । ठीक से दिखाई नहीं देता । पता नहीं कौन मेरी इस हालात को देख मेरी मदद करने के उद्देश्य से लिखा है ।"
बहुत ही कहने पर माँ जी ने पैसे तो रख ली । पर एक विनती की - ' बेटा, वह मैंने नहीं लिखा है । किसी ने मुझ पर तरस खाकर लिखा होगा । जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना बेटा ।'
मैनें तो उसे हाँ कहकर टाल तो दिया पर मेरी अंतरात्मा ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि । उन 50-60 लोगों से भी माँ ने यही कहा होगा । किसी ने भी नहीं फाड़ा । मेरा हृदय उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता से भर गया । जो इस वृद्धा की सेवा का उपाय ढूँढा । सहायता के तो बहुत से मार्ग हैं , पर इस तरह की सेवा मेरे हृदय को छू गई ।
उस अकेली वृद्धा की जिंदगी के लिए इससे अच्छा कोई उपाय नहीं है ।
मैंने उस कागज को फाड़ा नहीं । आप ही बताइये आप अगर ऐसी परिस्थिति का सामना करते तो क्या करते ।

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ऋषि की शिक्षा

पुराने समय की बात है। एक राजा ने अपने राजकुमार को ऋषि के पास शिक्षा लेने भेजा। ऋषि ने राजकुमार से पूछा कि तुम क्या बनना चाहते हो? 
राजकुमार ने उतर दिया, वीर योद्धा। 
ऋषि ने उसे समझाया कि ये दोनों शब्द दिखने में एक जैसे जरूर हैं लेकिन दोनों में बुनियादी फर्क  है। योद्धा यानी रण में साहस दिखाना। इसके लिए शस्त्र कला का अभ्यास करो, घुड़सवारी सीखो लेकिन अगर वीर बनना है तो नम्र बनो और सबसे मित्रवत व्यवहार करने की आदत डालो। राजकुमार को बात जंची नहीं और वह अपने घर लौट गया।
कुछ दिनों बाद राजा राजकुमार के साथ जंगल से गुजर रहा था। चलते-चलते शाम हो गई। राजा को ठोकर लगी तो वह गिर गया। गिरते ही राजा की अंगुली में पहनी अंगूठी रेत में गिर कर कहीं खो गई। राजा को चिंता हुई, लेकिन अब अंधेरे में उसे कैसे ढूंढ़ा जाए? 
राजकुमार को उपाय सूझा। उसने जहां हीरा गिरा था उसके आस-पास की रेत को पोटली में बांध लिया और साथ ले आया। राजा ने राजकुमार से पूछा- ये विचार तुम्हे कैसे आया?
उसने कहा कि जब हीरा ऐसे नहीं मिलता तो उसके आस-पास की रेत को भी साथ ले लो और बाद में जो कीमती है वो उसमे से निकाल लो बाकि को फेंक दो।
राजा चुप हो गया। कुछ दूर चलकर उसने पुन: राजकुमार से पूछा कि फिर ऋषि का ये कहना कैसे गलत हो गया कि सबसे मित्रता का अभ्यास करो। मित्रता का दायरा बड़ा होने से उसमें से हीरे को खोजना आसान हो जाता है। राजकुमार को अपनी भूल का अहसास हुआ। अगले ही दिन वह उस ऋषि के आश्रम शिक्षा लेने पहुंच गया।
गुरु ने राजा को ऐसा दंड क्यों दिया कि वह कभी भूल नहीं सका?

खुसरो प्रथम के नाम से ईरान का शासक बनने से बहुत पहले खुसरो एक गुरुकुल में रहता था और उसके गुरु उसे समस्त शास्त्र और विद्या में पारंगत करने के लिए प्रतिबद्ध थे। एक दिन खुसरो के गुरु ने अकारण ही उसे कठोर शारीरिक दंड दे दिया। कई वर्ष बाद जब खुसरो राजगद्दी पर बैठा तो उसने सबसे पहले अपने गुरु को महल में बुलवाया और पूछा कि उन्होंने सालों पहले किस अपराध के लिए उसे कठोर दंड दिया था।आपने मुझे अकारण ही कठोर दंड क्यों दिया? आप भली-भांति जानते थे कि मैंने कोई भी गलती या अपराध नहीं किया था।' जब मैंने तुम्हारी बुद्धिमता देखी, तब यह जान गया कि एक न एक दिन तुम अपने पिता के साम्राज्य के उत्तराधिकारी अवश्य बनोगे', गुरु ने कहा।
'तब मैंने यह निश्चय किया कि तुम्हें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि किसी व्यक्ति के साथ किया गया अन्याय उसके हृदय को आजीवन मथता रहता है। मैं आशा करता हूं कि तुम किसी भी व्यक्ति को बिना किसी कारण के कभी प्रताड़ित नहीं करोगे।'

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महान वैज्ञानिक थॉमस एडिसन (Thomas Alva Edison) बहुत ही मेहनती एंव जुझारू प्रवृति के व्यक्ति थे| बचपन में उन्हें यह कहकर स्कूल से निकाल दिया गया कि वह मंद बुद्धि बालक है| उसी थॉमस एडिसन ने कई महत्वपूर्ण आविष्कार किये जिसमें से “बिजली का बल्ब” प्रमुख है| उन्होंने बल्ब का आविष्कार करने के लिए हजारों बार प्रयोग किये थे तब जाकर उन्हें सफलता मिली थी|

एक बार जब वह बल्ब बनाने के लिए प्रयोग कर रहे थे तभी एक व्यक्ति ने उनसे पूछा – “आपने करीब एक हजार प्रयोग किये लेकिन आपके सारे प्रयोग असफल रहे और आपकी मेहनत बेकार हो गई| क्या आपको दुःख नहीं होता?”

एडिसन ने कहा – “मै नहीं समझता कि मेरे एक हजार प्रयोग असफल हुए है| मेरी मेहनत बेकार नहीं गयी क्योंकि मैंने एक हजार प्रयोग करके यह पता लगाया है कि इन एक हजार तरीकों से बल्ब नहीं बनाया जा सकता| मेरा हर प्रयोग, बल्ब बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है और मैं अपने प्रत्येक प्रयास के साथ एक कदम आगे बढ़ता हूँ|”

कोई भी सामान्य व्यक्ति होता तो वह जल्द ही हार मान लेता लेकिन थॉमस एडिसन ने अपने प्रयास जारी रखे और हार नहीं मानी| आखिरकार एडिसन की मेहनत रंग लायी और उन्होंने बल्ब का आविष्कार करके पूरी दुनिया को रोशन कर दिया|

यह थॉमस एडिसन का विश्वास ही था जिसने आशा की किरण को बुझने नहीं दिया नहीं और पूरी दुनिया को बल्ब के द्वारा रोशन कर दिया|



सफलता के रास्ते तभी खुलते है जब हम उसके करीब पहुँच जाते है

“मेहनत कभी बेकार नहीं जाती| यह विश्वास ही हमें आगे बढ़ने एंव निरंतर प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है| हमारा हर प्रयास हमें एक कदम आगे बढ़ाता है और हम जैसे जैसे आगे बढ़ते है वैसे वैसे हमारे लिए सफलता के रास्ते खुलते जाते है|

जो व्यक्ति विश्वास नहीं करता वो ज्यादा देर तक प्रयास नहीं कर पाता और जब वह प्रयास नहीं करता तो दूर से उसे आगे के सभी रास्ते बंद नजर आते हैं क्योंकि सफलता के रास्ते हमारे लिए तभी खुलते जब हम उसके बिल्कुल करीब पहुँच जाते है|”

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एक इंसान घने जंगल में भागा जा रहा था। 
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शाम हो गई थी। 
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अंधेरे में कुआं दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया।
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गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उसके हाथ में आ गई। जब उसने नीचे झांका, तो देखा कि कुएं में चार अजगर मुंह खोले उसे देख रहे हैं |
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जिस डाल को वह पकड़े हुए था, उसे दो चूहे कुतर रहे थे। 
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इतने में एक हाथी आया और पेड़ को जोर-जोर से हिलाने लगा। 
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वह घबरा गया और सोचने लगा कि हे भगवान अब क्या होगा ?
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उसी पेड़ पर मधुमक्खियों का छत्ता लगा था।
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हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उडऩे लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं। 
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एक बूंद उसके होठों पर आ गिरी। उसने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा, तो शहद की उस बूंद में गजब की मिठास थी। 
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कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूंद उसके मुंह में टपकी। 
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अब वह इतना मगन हो गया कि अपनी मुश्किलों को भूल गया। 
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तभी उस जंगल से शिव एवं पार्वती अपने वाहन से गुजरे। 
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पार्वती ने शिव से उसे बचाने का अनुरोध किया। 
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भगवान शिव ने उसके पास जाकर कहा - मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं। मेरा हाथ पकड़ लो। 
उस इंसान ने कहा कि एक बूंद शहद और चाट लूं, फिर चलता हूं। 
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एक बूंद, फिर एक बूंद और हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार। 
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आखिर थक-हारकर शिवजी चले गए।
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मित्रों..
वह जिस जंगल में जा रहा था,
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वह जंगल है 👉दुनिया,
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अंधेरा है 👉अज्ञान
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पेड़ की डाली है 👉आयु
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दिन-रात👉दो चूहे उसे कुतर रहे हैं।
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घमंड👉मदमस्त हाथी पेड़ को उखाडऩे में लगा है। 
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शहद की बूंदें👉सांसारिक सुख हैं, जिनके कारण मनुष्य खतरे को भी अनदेखा कर देता है.....। 
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यानी, 
सुख की माया में खोए मन को भगवान भी नहीं बचा सकते......।

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एक पिता ने अपनी बेटी की अच्छे परिवार में सगाई करवाई,
लड़का बड़े अच्छे घर से था सुशील था तो पिता बहुत खुश हुए..
लड़के ओर लड़के के माता पिता का स्वभाव बड़ा अच्छा था तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया.....
एक दिन शादी से पहले लड़के वालों ने लड़की के पिता को खाने पे बुलाया
पिता की तबीयत ठीक न थी फिर भी वो ना न कह सके.
लड़के वालो ने बड़े आदर सत्कार से उनका हार्दिक स्वागत किया....
फ़िर लड्की के पिता के लिए चाय आई
डायबीटिज कि वजह से लड्की के पिता को चीनी वाली चाय से दुर रहने को कहा गया था
लेकिन लड़की के होने वाले ससुराल में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली...
चाय कि पहली चुस्की लेते ही चोंक गये
चीनी बिल्कुल भी नहीं थी और  ईलायची भी डाली हुई थी
सोच मे पड़ गये हमारी जैसी चाय पी ते हैं ये लोग भी..
दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा,
दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चद्धर
उठते ही सोन्फ़ का पानी पिने को दिया गया...
वंहा से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पुछ बैठे
                         मुझे क्या खाना है,
क्या पीना है,
    मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है ??
     ये perfectly आपको कैसे पता है??
तो बेटी कि सास ने कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी का phone आ गया था ओर कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं,बोलेंगे कुछ नहीं plz आप उनका ध्यान रखियेगा
पिता की आंखों मे वहीं पानी आ गया था
लड़की के पिता जब अपने घर पहुँचॆ
तो घर के हाल में लगी आपनी स्वर्गवासी माँ के photo से हार निकाल दिया
तो पत्नी ने पूछा कि ये कया कर रहे हो
तो लड्की का पिता बोला
मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से गयी नहीं मेरी बेटी के रुप में इस घर में ही रहती है और फिर पिता की आंखों से आँसू  छलक गये...
सब कहते हैं कि बेटी है एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी
बेटी कभी भी अपने माँ बाप के घर से नहीं जाती
वो हमेशा उनके दिल में मौजूद रहती है...!!

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...संसार का सबसे शक्तिशाली इंसान......_
एक पिता ने अपने पुत्र की बहुत अच्छी तरह से परवरिश की !उसे अच्छी तरह से पढ़ाया, लिखाया, तथा उसकी सभी सुकामनांओ की पूर्ती की !
कालान्तर में वह पुत्र एक सफल इंसान बना और एक मल्टी नैशनल कंपनी में सी.ई.ओ. बन गया ! 
उच्च पद ,अच्छा वेतन, सभी सुख सुविधांए उसे कंपनी की और से प्रदान की गई !
समय गुजरता गया उसका विवाह एक सुलक्षणा कन्या से हो गया,और उसके एक सुन्दर कन्या भी हो गई !
पिता अब बूढा हो चला था ! एक दिन पिता को पुत्र से मिलने की इच्छा हुई और वो पुत्र से मिलने उसके ऑफिस में गया.....!!!
वहां उसने देखा कि..... उसका पुत्र एक शानदार ऑफिस का अधिकारी बना हुआ है, उसके ऑफिस में सैंकड़ो कर्मचारी उसके अधीन कार्य कर रहे है... ! 
ये सब देख कर पिता का सीना गर्व से फूल गया !
वो चुपके से उसके चेंबर में पीछे से जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया !
और प्यार से अपने पुत्र से पूछा...
"इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है"? पुत्र ने पिता को बड़े प्यार से हंसते हुए कहा "मेरे अलावा कौन हो सकता है पिताजी "!
पिता को इस जवाब की आशा नहीं थी, उसे विश्वास था कि उसका बेटा गर्व से कहेगा पिताजी इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान आप हैैं, जिन्होंने मुझे इतना योग्य बनाया !
उनकी आँखे छलछला आई ! वो चेंबर के गेट को खोल कर बाहर निकलने लगे !
उन्होंने एक बार पीछे मुड़ कर पुनः बेटे से पूछा एक बार फिर बताओ इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान कौन है ???
पुत्र ने इस बार कहा
"पिताजी आप हैैं, इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान "! 
पिता सुनकर आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने कहा "अभी तो तुम अपने आप को इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान बता रहे थे अब तुम मुझे बता रहे हो " ???
पुत्र ने हंसते हुए उन्हें अपने सामने बिठाते हुए कहा "पिताजी उस समय आप का हाथ मेरे कंधे पर था, जिस पुत्र के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ हो वो पुत्र तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान ही होगा ना,,,,,
बोलिए पिताजी" ! 
पिता की आँखे भर आई उन्होंने अपने पुत्र को कस कर के अपने गले लग लिया !
*सच है जिस के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ होता है, वो इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान होता है !*
सदैव बुजुर्गों का सम्मान करें!!!!
हमारी सफलता के पीछे वे ही हैं🙏🙏

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एक युवक ज्योतिष का अध्ययन करके लौटा। उसका पिता पुराना अनुभवी ज्योतिषी था। उसने अपने बेटे से कहा कि जल्दी मत करना। क्योंकि यह ज्योतिष बडी गहरी कला है। इसमें सत्य कहना आवश्यक नहीं है। इसमें सत्य कहने से बचना पड़ता है। और इसमें सत्य भी कहना हो तो ऐसे ढंग से कहना होता है कि उसका पता न चल पाए। इसमें असत्य भी बोलने पड़ते हैं। यह बड़ी मीठी कला है। इसमें सिर्फ शास्त्र के ज्ञान से कुछ न होगा। तू ठहर। हर किसी को ज्योतिष का ज्ञान मत दिखाने लगना।
लेकिन उस युवक ने कहा, कि मैं काशी से लौटा हूं और सब ज्ञान पूरा पा लिया हूं और अब रुकना मुझसे नहीं हो सकता। मैं जाता हूं सम्राट के पास। और जितना मैं जानता हूं उससे मैं घोषणा कर सकता हूं कि क्या होने वाला है। उसने कहा, तेरी मर्जी। मैं भी पीछे आता हूं।
बाप ने कहा कि पहले मैं सम्राट को कुछ कहूं उसका हाथ देखूं फिर तू देखना। बाप ने हाथ देखा, और उसने कहा कि साम्राज्य और बढ़ेगा; तेरे जीवन में सूर्योदय होने के करीब है। युवक थोड़ा हैरान हुआ, क्योंकि रेखाए कुछ और कहती हैं, यह आदमी मरने के करीब है।
बाप को सम्राट ने सम्मानित किया, धन दिया, कीमती वस्तुएं भेंट कीं। बेटे ने हाथ देखकर कहा कि एक बात भर निश्चित है कि तुम सात दिन से ज्यादा नहीं जीओगे। सम्राट ने उसे पकड़वाकर कोड़े लगवाए। बाप खड़ा देखता हंसता रहा। पिटे हुए लड़के को लेकर घर लौटा'। उससे कहा कि देख, शास्त्र में जो लिखा है वह समझदारों के लिए है। समझदार कहां हैं लेकिन! वह मुझे भी दिख रहा था कि सात दिन में मरेगा, लेकिन उसके पहले अपने को मरना हो तो इसकी घोषणा करनी है। सत्य कहना काफी नहीं है। वह क्या चाहता है? उसकी वासना क्या है? उसकी हाथ की रेखा से ज्यादा उसकी इच्छाओं की रेखाओं को पहचानना जरूरी है।
इसलिए जब आप ज्योतिषी के पास जाते हैं, तो वह आपकी इच्छाओं की रेखाएं पहचानता है। वह कोशिश करता है, वासनाएं कहां दौड़ रही हैं, उनमें जितनी दूर तक सहयोग दे सके, देता है।
मरते दम तक भी आदमी यह सुनना नहीं चाहता है कि वह मर रहा है, या मरने वाला है।
*समय का महत्व*
एक छात्र उच्च शिक्षा के लिये अमरीका गया। उसका छात्रावास महाविद्यालय से थोड़ी ही दूर था। विद्यालय का समय प्रातः 8 बजे का था। पहले दिन यह छात्र अपने कमरे में तैयार हो रहा था,तभी आठ बज गए। फिर भी वह आराम से चलता हुआ विद्यालय पहुंचा। वहाँ उसने देखा कि सब छात्र कक्षा में आ चुके है और पढ़ाई प्रारम्भ हो चुकी है। शिक्षक ने भारतीय छात्र को कक्षा में बैठने की अनुमति तो दे दी लेकिन कहा,"मिस्टर पाण्डे,आप समय पर नहीं आते।"
अगले दिन पाण्डे ने समय पर कक्षा में पहुँचने का प्रयास किया, परंतु वह पांच मिनट देर से पहुंचा। शिक्षक ने पुनः कहा"मिस्टर पाण्डे, आप समय पर नहीं आते।"
दो बार कक्षा में सबके सामने टोकने से पाण्डे लज्जित हुआ। उसने देखा कि उसके अतिरिक्त और कोई छात्र देर से नहीं आता।अतः तीसरे दिन उसने विशेष प्रयास किया और पंद्रह मिनट पहले ही विद्यालय पहुँच गया।उसने देखा कि द्वार बंद है और वहाँ एक भी छात्र या शिक्षक नहीं है। जब आठ बजने में चार-पाँच मिनट रह गए तब चपरासी आया और उसने द्वार खोला।दरवाजा खोलने के पश्चात दो-तीन मिनट में ही सारे छात्र और शिक्षक आ गए। ठीक आठ बजे घंटा बजा और पढ़ाई आरम्भ हुई। एक भी छात्र देर से नहीं आया।
पाण्डे प्रसन्न था कि आज वह देर से नहीं,समय पर कक्षा में आया है परन्तु उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब शिक्षक ने फिर कहा,"पाण्डे,आप समय का ध्यान नहीं रखते।"पाण्डे ने कहा,"सर,आज मैं देर से नहीं आया,बल्कि 15 मिनट पहले ही आ गया था। फिर भी आप ऐसा कह रहे है।"
इस पर शिक्षक ने मुस्कुरा कर कहा," दो चार मिनट भी देर से आना ठीक नहीं है। लेकिन 15 मिनट पहले आकर फाटक के बाहर खड़े रहना भी अच्छा नहीं है। इन मिनटों में आप अपने कमरे में कुछ अध्ययन कर सकते थे।" इस तरह अमरीकी अध्यापक ने भारतीय छात्र को समय के महत्व का ज्ञान कराया।

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एक राजा था। उसने 10 खूंखार जंगली कुत्ते पाल रखे थे। जिनका इस्तेमाल वह लोगों को उनके द्वारा की गयी गलतियों पर मौत की सजा देने के लिए करता था।
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एक बार कुछ ऐसा हुआ कि राजा के एक पुराने मंत्री से कोई गलती हो गयी। अतः क्रोधित होकर राजा ने उसे शिकारी कुत्तों के सम्मुख फिकवाने का आदेश दे डाला।
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सजा दिए जाने से पूर्व राजा ने मंत्री से उसकी आखिरी इच्छा पूछी।
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“राजन ! मैंने आज्ञाकारी सेवक के रूप में आपकी 10 सालों से सेवा की है… मैं सजा पाने से पहले आपसे 10 दिनों की मोहलत चाहता हूँ ।” मंत्री ने राजा से निवेदन किया ।
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राजा ने उसकी बात मान ली ।
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दस दिन बाद राजा के सैनिक मंत्री को पकड़ कर लाते हैं और राजा का इशारा पाते ही उसे खूंखार कुत्तों के सामने फेंक देते हैं। 
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परंतु यह क्या कुत्ते मंत्री पर टूट पड़ने की बाजए अपनी पूँछ हिला-हिला कर मंत्री के ऊपर कूदने लगते हैं और प्यार से उसके पैर चाटने लगते हैं।
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राजा आश्चर्य से यह सब देख रहा था उसने मन ही मन सोचा कि आखिर इन खूंखार कुत्तों को क्या हो गया है ? वे इस तरह क्यों व्यवहार कर रहे हैं ?
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आखिरकार राजा से रहा नहीं गया उसने मंत्री से पुछा , ये क्या हो रहा है , ये कुत्ते तुम्हे काटने की बजाये तुम्हारे साथ खेल क्यों रहे हैं ?
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राजन ! मैंने आपसे जो १० दिनों की मोहलत ली थी , उसका एक-एक क्षण मैं इन बेजुबानो की सेवा करने में लगा दिया। 
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मैं रोज इन कुत्तों को नहलाता ,खाना खिलाता व हर तरह से उनका ध्यान रखता। 
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ये कुत्ते खूंखार और जंगली होकर भी मेरे दस दिन की सेवा नहीं भुला पा रहे हैं...
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परंतु खेद है कि आप प्रजा के पालक हो कर भी मेरी 10 वर्षों की स्वामीभक्ति भूल गए और मेरी एक छोटी सी त्रुटि पर इतनी बड़ी सजा सुन दी.! 
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राजा को अपनी भूल का एहसास हो चुका था , उसने तत्काल मंत्री को आज़ाद करने का हुक्म दिया और आगे से ऐसी गलती ना करने की सौगंध ली।
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मित्रों, कई बार इस राजा की तरह हम भी किसी की बरसों की अच्छाई को उसके एक पल की बुराई के आगे भुला देते हैं। 
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यह कहानी हमें क्षमाशील होना सिखाती है, ये हमें सबक देती है कि हम किसी की हज़ार अच्छाइयों को उसकी एक बुराई के सामने छोटा ना होने दें।

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एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ लहान बाजार से जा रहा था।
अचानक से उसे लगा की,उसकी बहन पीछे रह गयी है।
वह रुका, पीछे मुडकर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।
लडका पीछे आता है और बहनसे पुछता है, "कुछ चाहिये तुम्हे ?" लडकी एक गुड़िया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।
बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुड़िया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी है।

दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का प्रगल्भ व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ ....
अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पुछा, "सर, कितनी कीमत है इस गुड़िया की ?"
दुकानदार एक शांत व्यक्ति है, उसने जीवन के कई उतार देखे होते है। उन्होने बडे प्यार और अपनत्वसे बच्चे पुछा, "बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो?"
बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोडी देर पहले बहनके साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर लायी थी।
दुकानदार वो सब लेकर युं गिनता है जैसे पैसे गिन रहा हो।
सीपें गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,"सर कुछ कम है क्या?"
दुकानदार :-" नही नही, ये तो इस गुड़िया की कीमत से ज्यादा है, ज्यादा मै वापस देता हूं" यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी।
बच्चा बडी खुशीसे वो सीपें जेबमे रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।
यह सब उस दुकान का कामगार देख रहा था, उसने आश्चर्यसे मालिकसे पुछा, " मालिक ! इतनी महंगी गुड़िया आपने केवल 4 सीपों के बदले मे दे दी ?"
दुकानदार एक सीमित हास्य करते हुये बोला, 
"हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस 6 साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है। और अब इस उम्र मे वो नही जानता की पैसे क्या होते है ?
पर जब वह बडा होगा ना...
और जब उसे याद आयेगा कि उसने सीपों के बदले बहन को गुड़िया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरुर आयेगी, वह सोचेगा कि,,,,,,
"यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भरा हुआ है।"
यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टिकोण बढाने मे मदद करेगी और वो भी अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित होगा।


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